जुनूँ से कस्ब जो कर ली है बे-ख़ुदी मैं ने ग़म-ए-फ़िराक़ को बख़्शी है ज़िंदगी मैं ने न दूर मेरे तसव्वुर से जा मिरे हमदम तिरे ख़याल को समझा है बंदगी मैं ने नहीं ये शेवा-ए-उल्फ़त कि हुस्न हो रुस्वा पसंद तेरे लिए की है ख़ामुशी मैं ने नहीं है ख़ौफ़ मुझे तीरगी का राहों की कि ज़ुल्मतों में भी कर ली है रौशनी मैं ने छुपा रहा था मगर सादगी मिरी 'तालिब' पते की बात भी कह दी हँसी हँसी मैं ने