हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है हमें किन इम्तिहानों से गुज़ारा जा रहा है किनारे को बचाऊँ तो नदी जाती है मुझ से नदी को थामता हूँ तो किनारा जा रहा है मैं डूबा जा रहा हूँ उन सदाओं के भँवर में मुझे अब चारों जानिब से पुकारा जा रहा है तआ'क़ुब मत करो उस के बदन की रौशनी का कि ये तो सिर्फ़ उस का इस्तिआरा जा रहा है ये सारा खेल फ़त्ह-ए-शाह का है जिस की ख़ातिर प्यादों जैसे इंसानों को हारा जा रहा है अब उस रुख़्सार का तिल है अलामत उस भँवर की जहाँ सारा समरक़ंद-ओ-बुख़ारा जा रहा है मिरे अशआ'र हैं वो आसमानी ख़्वाब जिन को मिरी मिट्टी के होंठों पर उतारा जा रहा है वहीं चश्म-ओ-लब-ओ-रुख़सार भी जाते हैं उस के जहाँ ये हुस्न का सारा इदारा जा रहा है मैं साहिल हो गया हूँ जब से वो दरिया हुआ है नज़र ठहरी हुई है और नज़ारा जा रहा है तो क्या ये वस्ल की शब है कि जब घर से बिछड़ के न जाने किस के घर मेरा सितारा जा रहा है अलम-बरदार तन्हाई था अपना 'फ़रहत-एहसास' हुजूम-ए-शहर के हाथों जो मारा जा रहा है