शैख़ आख़िर ये सुराही है कोई ख़ुम तो नहीं और भी बैठे हैं महफ़िल में हमीं तुम तो नहीं ना-ख़ुदा होश में आ होश तिरे ग़म तो नहीं ये तो साहिल के हैं आसार-ए-तलातुम तो नहीं नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा होंटों पे हल्की सी हँसी तेरी तस्वीर में सब कुछ है तकल्लुम तो नहीं देख अंजाम मोहब्बत का बुरा होता है मुझ से दुनिया यही कहती है बस इक तुम तो नहीं मुस्कुराते हैं सलीक़े से चमन में ग़ुंचे तुम से सीखा हुआ अंदाज़-ए-तबस्सुम तो नहीं अब ये मंसूर को दी जाती है नाहक़ सूली हक़ की पूछो तो वो अंदाज़-ए-तकल्लुम तो नहीं चाँदनी-रात का क्या लुत्फ़ 'क़मर' को आए लाख तारों की बहारें हैं मगर तुम तो नहीं