हर एक का हामी वो मुसीबत में हुआ है जिस का कोई दुनिया में नहीं उस का ख़ुदा है ख़ामोश हूँ मैं देख के रफ़्तार-ए-ज़माना हैरत सिफ़त-ए-दीदा-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है अच्छे हो तो अच्छे हो बुरे हो तो बुरे हो सुनते हो जो आवाज़ वो गुम्बद की सदा है इक उम्र हुई देखते नैरंग-ए-ज़माना वो अख़्तर-ए-क़िस्मत हूँ जो गर्दिश में रहा है क्यों ख़ून-ए-जिगर खाइए तकमील-ए-हुनर में हर नाक़िस-ए-फ़न आज अमीरुश-शु'अरा है अच्छा नहीं होता कभी बीमार-ए-मोहब्बत उल्फ़त वो मरज़ है कि अजल जिस की दवा है बेहतर है कि बाज़ आ सितम-ईजाद ओ जफ़ा से ऐ चर्ख़ बुरे काम का अंजाम बुरा है आसाँ नहीं ऐ जान सफ़र मुल्क-ए-अदम का सुनता हूँ कि दुश्वार बहुत राह-ए-फ़ना है रौशन है जहाँ नूर से उस पर्दा-नशीं के ख़ुर्शीद में ज़र्रा रुख़-ए-रौशन की ज़िया है अर्बाब-ए-करम फूलते फलते हैं हमेशा सरसब्ज़ निहाल-ए-करम-ए-अह्ल-ए-सख़ा है नाक़िस के मुआफ़िक़ है ख़िलाफ़ अहल-ए-हुनर के बदली हुई 'रौशन' ये ज़माने की हवा है