हर एक ख़्वाब में हर्फ़-ओ-बयाँ में रहता है वो एक शख़्स जो दिल के मकाँ में रहता है न दिल निकलता है उस का न शाम होती है अब इस तरह से भी कोई जहाँ में रहता है यक़ीन है कि वो मुझ पर यक़ीन रखता है गुमान है तो वो अब तक गुमाँ में रहता है मैं इस तरह से हूँ आज़ाद अपनी दुनिया में कि जैसे कोई परिंद आशियाँ में रहता है रखा हुआ है हिफ़ाज़त के साथ उसे दिल में मैं बे-अमान हूँ वो तो अमाँ में रहता है