रौशनी का पर्दा है दरमियाँ तिरे मेरे और प्यार जारी है प्यार में मोहब्बत में हम न ख़ुद को बदलेंगे ऐसी अपनी यारी है हाथ में जो आँखें हैं इन पे ही फ़क़त तकिया किस क़दर है ना-काफ़ी कुछ मदद भी ली जाए दूसरों से औरों से ये भी होशियारी है ढंग है समाअ'त का रंग है बसारत का बे-तरह-ओ-बे-मा'नी नंग के लिए दौड़ें हम भी सारी दुनिया में एक जंग जारी है सुर्ख़ लफ़्ज़ हैं मेरे मैं भी शेर कहता हूँ और जब सुनाता हूँ कोई बोल उठता है शेर शेर में तेरे एक ग़म-गुसारी है सर बरहना शाख़ों पर एक दिन वो आता है और गुलाब खिलते हैं तजरबा है ये अपना हम ने भी यहाँ आख़िर ज़िंदगी गुज़ारी है आँख वाले सावन में एक बात देखी है और कह भी दूँ तुम से तिश्नगी मिटाता है दिल की तिश्नगी का ये क़ुदरती शिकारी है बुझ रही हैं क्यों आँखें साथ माह-ओ-अंजुम के कौन सा ये सूरज है ज़िंदगी न छिन जाए आरज़ी सी तो 'बेदी' ज़िंदगी हमारी है