हर इक को उस की कमाई पलट के आती है भलाई हो कि बुराई पलट के आती है जो बात की थी किसी पर वो अब सुनो भी सही कहा न था कि ये भाई पलट के आती है मैं उस के अक्स को दीवार पर लगाऊँ ज़रा दिखाऊँ कैसे ख़ुदाई पलट के आती है किसी को आइना जब भी दिखाएँ बदले में उधर से तल्ख़-नवाई पलट के आती है 'सग़ीर' दिल है कि ख़ाली मकान है कोई कि आह बन के दुहाई पलट के आती है