हर एक शख़्स की पगड़ी उछालने वाला ज़लील होता है ज़िल्लत में डालने वाला उसे भी वक़्त ने बुज़दिल बना दिया है जो था बात बात पे ख़ंजर निकालने वाला कभी तो डालेगा उस में ख़ुशी का टुकड़ा भी जहाँ के ग़म मिरी झोली में डालने वाला मैं आइना हूँ मिरी शख़्सियत है आईना ये सोच ले ज़रा कीचड़ उछालने वाला हर एक लफ़्ज़ बताता है कैफ़ियत दिल की हूँ वारदात को शे'रों में ढालने वाला ज़माना लाख भी चाहे गिरा नहीं सकता ख़ुदा का लुत्फ़ है मुझ को सँभालने वाला मैं अपनी भूक का इज़हार क्यों करूँ 'मुख़्तार' मुझे न भूलेगा दुनिया को पालने वाला