उस की तारीफ़ करना मुश्किल है माह-ए-कामिल तो माह-ए-कामिल है ग़म पे भी मुस्कुराने वालों में शुक्र है मेरा नाम शामिल है दिल हमारा जो मुज़्तरिब है आज ये तुम्हारे ग़मों का हासिल है उस के रोने पे ए'तिबार हो क्या आँसुओं में फ़रेब शामिल है हार मानी थी जिस ने कल मुझ से आज फिर वो मिरे मुक़ाबिल है आश्नाई ख़ुदा से कैसे हो आज हर शख़्स ख़ुद से ग़ाफ़िल है उन के आने से क़ब्ल ही 'मुख़्तार' क़ाबिल-ए-दीद रंग-ए-महफ़िल है