हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है हमारे चारों तरफ़ रौशनी मलाल की है हम अपने हिज्र में तेरा विसाल देखते हैं यही ख़ुशी की है साअत, यही मलाल की है हमारे ख़ाना-ए-दिल में नहीं है क्या क्या कुछ ये और बात कि हर शय इसी मलाल की है अभी से शौक़ की आज़ुर्दगी का रंज न कर कि दिल को ताब ख़ुशी की न थी मलाल की है किसी का रंज हो, अपना समझने लगते हैं वबाल-ए-जाँ ये कुशादा-दिली मलाल की है नहीं है ख़्वाहिश-ए-आसूदगी-ए-वस्ल हमें जवाज़-ए-इश्क़ तो बस तिश्नगी मलाल की है गुज़िश्ता रात कई बार दिल ने हम से कहा कि हो न हो ये घुटन आख़िरी मलाल की है रगों में चीख़ता फिरता है एक सैल-ए-जुनूँ अगरचे लहजे में शाइस्तगी मलाल की है अजीब होता है एहसास का तलव्वुन भी अभी ख़ुशी की ख़ुशी थी, अभी मलाल की है ये किस उमीद पे चलने लगी है बाद-ए-मुराद? ख़बर नहीं है उसे, ये घड़ी मलाल की है दुआ करो कि रहे दरमियाँ ये बे-सुख़नी कि गुफ़्तुगू में तो बे-पर्दगी मलाल की है तिरी ग़ज़ल में अजब कैफ़ है मगर 'इरफ़ान' दरुन-ए-रम्ज़-ओ-किनाया कमी मलाल की है