तू जो अंजान है By Ghazal << हर एक शक्ल में सूरत नई मल... शिकस्ता अक्स था वो या ग़ु... >> तू जो अंजान है मेरी पहचान है रात सुनसान है दिल परेशान है तेरे बिन ज़िंदगी कैसी वीरान है ये जो मुस्कान है हश्र सामान है दिल का जो चोर है दिल का मेहमान है कैसा ज़ीशान है तेरा दरबान है चारागर इक नज़र अब चली जान है ये निगाह-ए-करम मुझ पे एहसान है Share on: