हर फ़िक्र से बेगाना-ओ-अंजान बना दे बच्चे की तरह फिर मुझे नादान बना दे सुल्ताँ है बनाना जिसे सुलतान बना दे मुझ को तो दर अपने का तू दरबान बना दे जिस वक़्त ज़रूरत हो मैं ख़ुद झाँक के पढ़ लूँ दिल को ही मिरे गीता-ओ-क़ुरआन बना दे मुझ को नहीं ख़्वाहिश कि फ़रिश्ता बनूँ मौला इस बंदा-ए-नाचीज़ को इंसान बना दे हिंदू हो कोई चाहे मुसलमान हो कोई हर शख़्स को तू साहिब-ए-ईमान बना दे मर-मर के जिएँ किस लिए बंदे तिरे मौला जीना भी ज़रा मौत सा आसान बना दे बंदे को करा बंदे की अज़्मत का तू एहसास फिर से इसे मख़्लूक़ की तू शान बना दे शैतान की कर ख़त्म तू दुनिया से हुकूमत धरती को ही जन्नत मिरे भगवान बना दे