हर दिल के मुक़द्दर में मोहब्बत नहीं होती हर शख़्स के हिस्से में ये ने'मत नहीं होती मिल जाए मोहब्बत का जब ऐ दोस्त सहारा फिर और सहारे की ज़रूरत नहीं होती उस दिन मुझे लगता है कोई पाप हुआ है जिस दिन तिरे कूचे की ज़ियारत नहीं होती करते हैं गिला तुम से तुम्हें अपना समझ के ग़ैरों से तो ऐ दोस्त शिकायत नहीं होती जलना है पतंगे तो तू जल सोज़-ए-जिगर से 'आशिक़ को तो आतिश की ज़रूरत नहीं होती किस दर्जा है मसरूफ़ नए दौर का इंसाँ ख़ुद से भी इसे मिलने की फ़ुर्सत नहीं होती बिन तेरे करूँ ज़ीस्त में तौबा मिरी तौबा मुझ से तो मिरी जान ये जुरअत नहीं होती कुछ काम नहीं आती है मेहनत भी बशर की जब तक मिरे मौला तिरी रहमत नहीं होती मेहनत से कमा के तू 'सदा' अपनी गुज़र कर जो मुफ़्त मिले उस में तो बरकत नहीं होती