हर घड़ी दर्द की शिद्दत से बिलकती आँखें आतिश-ए-हिज्र से हर लम्हा पिघलती आँखें एक लम्हे की मुलाक़ात हुई उम्र का रोग उस की सूरत को हैं हर वक़्त तरसती आँखें दिल-ए-बेताब में अब तक वो मचलती ख़्वाहिश तेरी ख़ुश्बू से मुसलसल ये महकती आँखें ख़्वाब में ठहरा हुआ झील का नीला मंज़र और उसी झील किनारे हैं भटकती आँखें अब तो वहशत सी टपकती है हर इक मंज़र से सोज़-ए-हिज्राँ की तपिश से हैं सुलगती आँखें इश्क़ नीलाम हुआ आम या नाकाम हुआ रह गईं अहल-ए-वफ़ा की तो बरसती आँखें सामने पा के उसे दूसरी जानिब तकना ये हक़ीक़त में हैं 'शाहीन' सँभलती आँखें