तीरगी की शिद्दत को सुब्ह का सितारा लिख फैलने ही वाला है हर तरफ़ उजाला लिख रज़्म-ए-गाह-ए-हस्ती में यूँ बुरा न सोच अपना दुश्मनों के अंदर के सुल्ह जो को अच्छा लिख नक़्श-ए-पा के जंगल में क्या शुमार रस्तों का है जुदा ज़माने से लेकिन अपना रस्ता लिख बे-हिसी का ये जादू टूट ही तो जाएगा इस लिए न क़र्ये को पत्थरों का सहरा लिख इस नगर के लोगों को पहले बख़्श बीनाई और बा'द में ख़ुद को इस नगर का ईसा लिख हर्फ़-ए-ज़ेहन में 'बेदी' रंग से तही कब हैं सिर्फ़ तेरा काग़ज़ है जो अभी है सादा लिख