हर घड़ी हर वक़्त ही बाज़ार में रहना पड़ा बेचना था ख़ुद को सो अख़बार में रहना पड़ा एक ही तहरीर को पानी पे लिक्खा बार बार रहना था बस इस लिए संसार में रहना पड़ा ख़्वाहिशें तो थीं कि हम बुनियाद का पत्थर बनें हाए कैसा जुर्म था दीवार में रहना पड़ा फिर किसी से दोस्ती उस ने न मेरे बाद की उम्र भर मुझ को भी फिर अग़्यार में रहना पड़ा वो जो था ख़ुशबू की मानिंद उड़ना जिस का शौक़ था बेबसी देखो उसे अशआर में रहना पड़ा हम तसव्वुर कर न पाए 'वाहिद' उस तस्वीर का रात भर हम को ख़याल-ए-यार में रहना पड़ा