किसी भी रहनुमाई का कोई दावा नहीं करते ग़ज़ल के पैरहन को हम मगर मैला नहीं करते हमारी चाहतों ने तो बड़े इक़रार देखे हैं किसी इंकार पर हम दिल कभी छोटा नहीं करते सराबों की हक़ीक़त से बहुत अच्छे से वाक़िफ़ हैं कभी भी ख़्वाब का हम दिन में तो पीछा नहीं करते यहाँ हर शय की क़ीमत बस मोहब्बत ही मोहब्बत है फ़क़ीरों से कभी जज़्बात का सौदा नहीं करते मुसलसल हादसों ने ये भी शफ़क़त छीन ली हम से कोई जब छोड़ जाता है तो हम सोचा नहीं करते कभी फिर हिजरतों का उन के मन से डर न निकलेगा परिंदे सो रहे हों जब शजर काटा नहीं करते सजे बाज़ार में बिक जाएँ ये लालच तो है 'वाहिद' मगर इनआ'म की ख़ातिर सुख़न हल्का नहीं करते