हर इक शय पर बहार-ए-ज़िंदगी महसूस करता हूँ

हर इक शय पर बहार-ए-ज़िंदगी महसूस करता हूँ
मगर बा-ईं-हमा तेरी कमी महसूस करता हूँ

भटक कर भी कभी मंज़िल से बेगाना नहीं होता
किसी की ग़ाएबाना रहबरी महसूस करता हूँ

मैं अपने दिल पे रख लेता हूँ तोहमत बद-गुमानी की
अगर तेरी तरफ़ से बे-रुख़ी महसूस करता हूँ

ये दुनिया अजनबी पहले भी थी और अब भी है लेकिन
अब अपने आप को भी अजनबी महसूस करता हूँ

तुम्हें इस बात का अंदाज़ा शायद हो नहीं सकता
कि तुम को देख कि कितनी ख़ुशी महसूस करता हूँ


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close