हर इक तकलीफ़ समझी है तुम्हारी फिर इस के बा'द मर्ज़ी है तुम्हारी नहीं साबित हुए काफ़िर कभी हम परस्तिश इस तरह की है तुम्हारी हमारे बा'द जानाँ सच बताओ किसी ने क्या ख़बर ली है तुम्हारी ख़ज़ाना उम्र भर ख़ाली न होगा अभी इक याद बेची है तुम्हारी मिरी आँखें न पढ़ पाए कभी तुम अमाँ डिग्री ही फ़र्ज़ी है तुम्हारी