हर क़दम पाँव में हैं अंगारे तेरी राय है क्या ख़ुदा बारे दोनों किस बेबसी में मिलते हैं आहू-ए-जाँ, ग़ज़ाल-ए-तातारे पाँव टिकता नहीं ज़मीं पे कहीं सर पे क्या घूमते हैं सय्यारे आँख की राह से निकल आए चाँद-रातों के सर्द मह-पारे ये न समझो गुनहगार नहीं कोई पत्थर अगर उठा मारे