उफ़ुक़ के पार उतर जाऊँ मैं इरादा है मगर ये उम्र है कम और सफ़र ज़ियादा है तलब के फूल बिछा दूँ मैं उस के रस्ते में वो एक शख़्स जो सहरा में पा-पियादा है किसी का नाम न तहरीर और न नक़्श कोई वरक़ किताब-ए-तमन्ना का कितना सादा है ख़ुद अपने फ़ैसले करने हैं ज़िंदगी में मुझे मैं ज़िंदगी से न पूछूँगी क्या इरादा है नहीं है 'शाहिदा' कुछ फ़िक्र अपने ग़म की मुझे मुझे तो दूसरे लोगों का दुख ज़ियादा है