हर कही अन-कही समझता है दिल तिरी ख़ामुशी समझता है चुप यूँही बे-सबब नहीं रहता वो मिरी शाइ'री समझता है दिल को उलझा न यूँ सवालों में ये तिरी सादगी समझता है हर किसी से नहीं किया करते बात कब हर कोई समझता है मैं समझती हूँ जो तुझे हमदम क्या मुझे तू वही समझता है रूठता ही नहीं किसी सूरत दिल तिरी बेबसी समझता है