हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था इस राह में हर ज़ख़्म हमें राह-नुमा था क्यूँ घिर के अब आए हैं ये बादल ये घटाएँ हम ने तो तुझे देर हुई याद किया था ऐ शीशागरो कुछ तो करो आइना-ख़ाना रंगों से ख़फ़ा रुख़ से जुदा यूँ न हुआ था इन आँखों से क्यूँ सुब्ह का सूरज है गुरेज़ाँ जिन आँखों ने रातों में सितारों को चुना था