हर किसी का हर किसी से राब्ता टूटा हुआ आँख से मंज़र ख़बर से वाक़िआ' टूटा हुआ क्यूँ ये हम-सूरत रवाँ हैं मुख़्तलिफ़ अतराफ़ में है कहीं से क़ाफ़िले का सिलसिला टूटा हुआ वाए मजबूरी कि अपना मस्ख़ चेहरा देखिए सामने रक्खा गया है आइना टूटा हुआ ख़ुद-ब-ख़ुद बदले तो बदले ये ज़मीं इस के सिवा क्या बशारत दे हमारा हौसला टूटा हुआ ख़्वाब के आगे शिकस्त-ए-ख़्वाब का था सामना ये सफ़र था मरहला-दर-मरहला टूटा हुआ कुछ तग़ाफ़ुल भी ख़बरदारी में शामिल कीजिए वर्ना कर डालेगा पागल वाहिमा टूटा हुआ