ख़्वाब बिखरेंगे तो हम को भी बिखरना होगा शब की इक एक अज़िय्यत से गुज़रना होगा वो हमारे ही रग-ओ-पै में निहाँ रहता है इस की तस्दीक़ तो इक दिन हमें करना होगा अपने ख़ाकिस्तर-ए-तन को लिए कूचे कूचे क्या हवाओं की तरह मुझ को गुज़रना होगा हमें अहबाब की बे-लौस रिफ़ाक़त के सबब वक़्त आएगा तो बे-मौत भी मरना होगा होंगे सहराओं के सन्नाटे नज़र की हद में कोई वादी न कोई ख़्वाब न झरना होगा आइना आइना ख़ुद सारी दिशाएँ होंगी अक्स-दर-अक्स मगर हम को उभरना होगा चीख़ते ख़्वाबों की ताबीर यही कहती है होगी हड़ताल कहीं तो कहीं धरना होगा