हर लहज़ा तमाशा-ए-दिगर देख रहे हैं

हर लहज़ा तमाशा-ए-दिगर देख रहे हैं
बनते हुए क़तरों को गुहर देख रहे हैं

तंज़ीम तिरी अहल-ए-नज़र देख रहे हैं
काँटों में नुमूद-ए-गुल-ए-तर देख रहे हैं

चौंकी हैं अभी नींद में डूबी हुई आँखें
खुलते हुए मयख़ाने का दर देख रहे हैं

अब गर्द-ए-कफ़-ए-पा हैं दयार-ए-मह-ओ-अंजुम
क़ुदसी मिरी पर्वाज़-ए-नज़र देख रहे हैं

रुख़ छूटे हुए मस्कन-ए-आदम की तरफ़ है
अफ़्लाक-नशीं अज़्म-ए-बशर देख रहे हैं

छिटकी तिरे मुखड़े की है ये चाँदनी जब से
हम शाम में अंदाज़-ए-सहर रेख रहे हैं

अल्लह रे तिरे आरिज़-ए-ताबाँ की तजल्ली
देखा नहीं जाता है मगर देख रहे हैं

हम अपने ही क़दमों की तजल्ली का तमाशा
ता-मंज़िल-ए-ख़ुर्शीद-ओ-क़मर देख रहे हैं

कुछ लोग हुए शौक़ से ख़ुद ज़ीनत-ए-आतिश
कुछ लोग तमाशा-ए-शरर देख रहे हैं

होंटों पे हँसी आँख में मासूम शरारत
नैरंग-ए-अदा शाम-ओ-सहर देख रहे हैं

अल्लाह-ग़नी हुस्न-ए-नज़र का ये करिश्मा
आँखें हैं किधर और किधर देख रहे हैं

ताक़ों से गिरे जाते हैं असनाम-ए-ख़याली
हम बुत-शिकनी-हा-ए-नज़र देख रहे हैं

ऐ नब्ज़-ए-दो-आलम तिरी रफ़्तार में 'सफ़दर'
आज अपने तरानों का असर देख रहे हैं


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