हर लम्हा हम ने बात रखी है ये ध्यान में इक दास्तान और भी है दास्तान में यारों ने एक आन में मुझ को गिरा लिया कोताह रह गया था मैं अपनी उड़ान में कीलें सी चुभ रही हैं बदन में शुआ'ओं की किस ने किए हैं छेद मिरे साएबान में आँखों की ख़ामुशी में समुंदर का शोर था लुक्नत सी पड़ गई थी हमारी ज़बान में लेते हैं साँस भी तो ज़रा सोच सोच कर हम लोग रह रहे हैं किसी के मकान में किस ने बिखेर दी हैं फ़ज़ा में उदासियाँ किस ने भरा है दर्द परिंदे की तान में कुछ लोग अश्क अश्क थे कुछ थे मिसाल-ए-नज्म कुछ गुम हुए ज़मीन में कुछ आसमान में हम नक़्द-ए-जिस्म-ओ-जाँ से ख़रीदेंगे क्या भला कुछ भी तो अब नहीं है तुम्हारी दुकान में