हर लम्हा कर्ब-ओ-दर्द-ओ-ग़म-ओ-इज़तिराब में या'नी मिरी हयात है पैहम अज़ाब में अब दिल हमारा बन गया ख़ुशियों का मक़बरा है दफ़्न हर ख़ुशी इसी ख़ाना-ख़राब में सदक़े हज़ार जान से लुत्फ़-ए-सुकून-ओ-ऐश उस लुत्फ़ पर जो पा लिया है इज़्तिराब में गहराई-ए-नज़र हो तो नज़्ज़ारा सहल है वर्ना हर एक चीज़ छुपी है नक़ाब में इस एटमी ज़माने की सौग़ात है यही है एक इक नफ़स ज़द-ए-क़हर-ओ-इताब में 'मक़बूल' क्या मक़ाम-ए-शहीद-ए-वफ़ा है देख आब-ए-हयात पा लिया है ज़हर-ए-नाब में