हर नफ़स में दिल की बेताबी बढ़ाते जाइए दूर रह कर भी मिरे नज़दीक आते जाइए इक ज़रा थम थम के ये पर्दे उठाते जाइए देखने वालों की नज़रें आज़माते जाइए मेरे इस ज़ुल्मत-कदे को जगमगाते जाइए हो सके तो मेरी ख़ातिर मुस्कुराते जाइए फिर इसी अंदाज़ से नज़रें मिलाते जाइए देखने वालों की नज़रें आज़माते जाइए या कोई तस्कीन की सूरत बताते जाइए या फिर अपनी याद से ग़ाफ़िल बनाते जाइए रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को दीवाना बनाते जाइए हुस्न की दिलचस्पियों के काम आते जाइए अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए कुफ़्र ओ ईमाँ के सिवा भी कुछ मनाज़िर और हैं उन के हर अंदाज़ पर ईमान लाते जाइए आ ही जाएगा कोई क़िस्मत का मारा क़ैस भी हर तरफ़ उम्म-ए-रुख़-ए-लैला बिछाते जाइए मैं ने कुछ फ़ितरत ही पाई है अजब मुश्किल-पसंद मेरी हर मुश्किल को मुश्किल-तर बनाते जाइए याद है 'माहिर' मुझे उन का वो कहना याद है आज तो बस रात भर ग़ज़लें सुनाते जाइए