हर नफ़स तेज़ आँच पर क्यों है ख़ौफ़-ए-तन्हाई इस क़दर क्यों है इब्तिदा क़ैद इंतिहा भी क़ैद फिर ये तफ़्हीम-ए-बाल-ओ-पर क्यों है दिल अगर मुंतज़िर नहीं उस का फिर ये तज़ईन-ए-बाम-ओ-दर क्यों है अपने साए से भी है ना-वाक़िफ़ आदमी इतना बे-ख़बर क्यों है बे-ज़बाँ है ये तेरी नज़रों में फिर तुझे आइने का डर क्यों है ख़ुद को दुश्मन भी वो नहीं कहता दोस्त गर है तो बे-ज़रर क्यों है अपने रंग-ए-हिजाब से पूछो 'राज़' शाइस्ता-ए-नज़र क्यों है