हर नफ़स वक़्फ़-ए-आरज़ू कर के कुछ भी पाया न जुस्तुजू कर के सौ शगूफ़े खिला दिए दिल में ख़ंदा-ए-गुल से गुफ़्तुगू कर के मुस्कुराता ही क्यूँ न रहने दो फ़ाएदा चाक-ए-दिल रफ़ू कर के कितने नौख़ेज़-ओ-नौ-दमीदा फूल मर मिटे ख़्वाहिश-ए-नुमू कर के ग़ैरत-ए-दिल ने आह-ए-सोज़ाँ को रख दिया सुर्मा-ए-गुलू कर के