हर रोज़ जो मर जाने का ए'लान करो हो सच बोलो कि तुम किस की मोहब्बत में मरो हो किस तरह यक़ीं हो कि कभी आन मिलोगे जब दूर से तुम आँख मिलाने से डरो हो अंजाम की तल्ख़ी को निगाहों में समोए क्यों ख़ून मिरे जज़्ब-ए-तमन्ना का करो हो देखे पे तो करते हो शनासाई से इंकार सुनता हूँ कि तुम मेरे लिए आहें भरो हो ज़ुल्फ़ों की घटा से रुख़-ए-रौशन को छुपा कर तुम दिन में सियह रात की तश्कील करो हो बारात सितारों की निकल आती है उस दम तारीकी में जब माँग को अफ़्शाँ से भरो हो मक़्बूल हैं 'हसरत' यूँही अशआ'र तुम्हारे तुम सह्ल-बयानी में ग़ज़ल पेश करो हो