हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे इक फूल सा खिल जाइए अब देर न कीजे इक जाम मोहब्बत से मसर्रत से भरा जाम छलकाइए छलकाइए अब देर न कीजे सच कहता हूँ इक उम्र से प्यासी है ये महफ़िल पैमाना-ब-कफ़ आइए अब देर न कीजे सावन की घटा बन के सुलगती हुई रुत में दुनिया पे बरस जाइए अब देर न कीजे ज़ंजीर में जकड़े हुए दीवानों को अपने सूली से उतरवाइए अब देर न कीजे सन्नाटा हर इक रूह को अब डसने लगा है इक गीत कोई गाइए अब देर न कीजे इस अहद-ए-शरर-बार पे फिर अम्न की शबनम बरसाइए बरसाइए अब देर न कीजे तलवारों ने चमकाया है मक़्तल की ज़मीं को तलवारों को दफ़नाइए अब देर न कीजे इक और हसीं ख़्वाब कि मिट जाए शब-ए-ग़म 'दौराँ' को भी दिखलाइए अब देर न कीजे