इन झिलमिलाते चाँद सितारों की छाँव में धीमे सुरों में गाए जो बाबुल तो हम सुनें आँगन में तेरे फूल रही होगी कामनी! जी चाहता है आज बसेरा वहीं करें ये चाँद आज उगा है बड़ी आरज़ू के ब'अद आओ मय-ए-नशात पिएँ ग़म ग़लत करें अपनी सुहाग-रात कभी भूलतीं नहीं मेरे हसीं दयार की शर्मीली औरतें रंग-ए-हिना से सुर्ख़ रहीं उन की उँगलियाँ ऐ काश सारी उम्र वो दूल्हन बनी रहें प्यारे हैं आज हम भी बहुत देर से निढाल तुम भी थके हुए हो चलो आओ सो रहें जाने है कौन महव-ए-सफ़र आधी रात को जाने ये किस की दूर से आती हैं आहटें हम को बुला लिया करो बातें किया करो दिल में तुम्हारे दर्द के तूफ़ान जब उठें उफ़्तादगान-ए-राह के दिल पर लगेगी चोट मंज़िल पे जा के क़ाफ़िले आवाज़ यूँ न दें तुम ने तमाम बाग़ को वीरान कर दिया ईंधन के ताजिरो ये पपीहे कहाँ रहें हर मरहला पे 'दौराँ' हमें उन की हो तलाश हर मंज़िल-ए-हयात पे उन का ही नाम लें