हर साहिब-ए-जमाल के दिल का मकीन है महफ़िल में एक शख़्स जो गोशा-नशीन है सूई भी ढूँड लाई है धागा भी फ़ारेहा और जौन है कि अपनी ही दुनिया में लीन है दुनिया हमारे बीच मुअ'ल्लक़ है इस तरह जिस तरह ऐन-ओ-क़ाफ़ के माबैन शीन है फ़रहाद कार-ख़ाने में तेशे गलाता है और क़ैस अपने शहर में सब से ज़हीन है जिस के लिए बना है उसी काम का नहीं इंसान अपने वक़्त की बिगड़ी मशीन है मैं आज़मा तो लूँ मिरे कुछ दोस्तों को पर कुछ दोस्तों का घर ही मिरी आस्तीन है जो तेरा हो गया वो किसी का नहीं हुआ ऐ मौत बिल-यक़ीन तू बेहद हसीन है इक आरज़ू का जिस्म अभी भी हवा में है और एक आरज़ू है जो ज़ेर-ए-ज़मीन है जो तुझ को चाहते हैं उन्हें चाहता हूँ मैं मुझ को यही सिखाया गया है ये दीन है तुम क्या किसी बहार में 'शादाब' हो सके तुम झूट बोलते थे कि मौसम हसीन है