हर सम्त ये हम शोर-ओ-शरर देख रहे हैं मज़लूम की आहों का असर देख रहे हैं मिटते हुए अस्लाफ़ की अज़्मत के निशानात देखे नहीं जाते हैं मगर देख रहे हैं कल तक जो उख़ुव्वत के लिए फिरते थे परचम बदली हुई आज उन की नज़र देख रहे हैं अर्बाब-ए-हुकूमत में है जहल और तग़ाफ़ुल ताराज हुआ जाता है घर देख रहे हैं जम्हूरी हुकूमत जिसे समझे थे परी हम इफ़रीत की सूरत है जिधर देख रहे हैं क्या बाग़ दिखाए गए आज़ादी से पहले किस दर्जा मिले तल्ख़ समर देख रहे हैं सब अहल-ए-वफ़ा हो गए कंगाल 'ग़ुबार' आज ना-अहलों के घर लाल-ओ-गुहर देख रहे हैं