हर शख़्स इसी ख़याल में है ये शहर भी यर्ग़माल में है क्या जानिए फ़िक्र क्या लगी है क्या हाशिया-ए-ख़याल में है मुमकिन है उरूज हो मयस्सर दुनिया तो अभी ज़वाल में है तख़्लीक़ का ला-ज़वाल लम्हा लफ़्ज़ों के हसीन जाल में है तहरीर हर एक फीकी फीकी हर मू-ए-क़लम ज़वाल में है बे-मिस्ल रफ़ाक़तों की ख़ुशबू आईना-ए-माह-ओ-साल में है लहजा ही बदल गया है उस का तल्ख़ी सी हर इक सवाल में है