धुंद ही धुंद है रस्ते में जहाँ तक जाऊँ रौशनी तेरे तआ'क़ुब में कहाँ तक जाऊँ मेरी औक़ात कहाँ मैं भी मकीं देख सकूँ बस यही बात बड़ी है कि मकाँ तक जाऊँ अक़्ल कहती है तिरी सारी तग-ओ-दौ बे-सूद दिल कहे इश्क़ में बे-सूद ज़ियाँ तक जाऊँ ऐन-मुमकिन है जुदाई की घड़ी टल जाए दिल का फ़रमान है मैं हद्द-ए-गुमाँ तक जाऊँ लज़्ज़त-ए-दीद का इज़हार कहाँ मुमकिन है आँख से गर मिले फ़ुर्सत तो ज़बाँ तक जाऊँ होश खो कर जो सुरूर आए उसे क्या करना कूचा-ए-होश से क्यों शहर-ए-मुग़ाँ तक जाऊँ ज़ब्त के बंद 'हिदायत' मैं कहाँ तक बाँधूँ चश्म-ए-तर दर्द-ब-कफ़ दश्त-ए-फ़ुग़ाँ तक जाऊँ