हर शख़्स असीर-ए-ग़म-ए-दौराँ नहीं होता हर अहल-ए-जुनूँ चाक-गरेबाँ नहीं होता हर कुंज-ए-क़फ़स रश्क-ए-बहाराँ नहीं होता हर फूल मताअ'-ए-चमनिस्ताँ नहीं होता करते हैं जो मंजधार से साहिल का तमाशा उन को कभी अंदेशा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता हर रात के दामन में नहीं नूर सहर का हर नूर-ए-सहर कैफ़-बदामाँ नहीं होता हर ज़ख़्म को रिसने की तमन्ना नहीं होती हर दर्द ज़ुबूँ-केश नुमायाँ नहीं होता हर ग़म के लिए इज़्न-ए-तबस्सुम नहीं लाज़िम हर एक तबस्सुम ग़म-ए-इंसाँ नहीं होता हर ज़र्रा नहीं होता है 'ख़ुर्शीद' का परतव ख़ुर्शीद हर इक ज़र्रा-बदामाँ नहीं होता