हर शय में मुझे कुल का तमाशा नज़र आया क़तरा लिए आग़ोश में दरिया नज़र आया थी शोख़-निगाही किसी ज़ालिम की क़यामत जज़्बात का आलम तह-ओ-बाला नज़र आया जब आँख खुली वहम भी था अस्ल सरासर जब राज़ खुला अस्ल भी धोका नज़र आया पहलू में जो था दिल तो फ़क़त ख़ून का क़तरा आँखों में पहुँचता था कि दरिया नज़र आया जब होश न आया था पराया भी था अपना होश आया तो अपना भी पराया नज़र आया इस बज़्म में अल्लाह-रे हैरत का ये आलम पर्दे के न होने पे भी पर्दा नज़र आया