हर शोरिश-ए-मस्ती का अफ़्साना नहीं बनता हर टूटे हुए दिल से पैमाना नहीं बनता दिल जोश-ए-तजस्सुस में हो जाता है दीवाना जलवों के बनाने से दीवाना नहीं बनता ता'मीर का ये पहलू है आबला-पाई में गुलशन के उजड़ने से वीराना नहीं बनता अश्कों को ज़रा पी कर सीने का भरम देखो छलके हुए साग़र से मय-ख़ाना नहीं बनता बे-सोज़-ए-तलब 'जौहर' ख़ुद उन की नज़र से भी उन्वान तो बनता है अफ़्साना नहीं बनता