हर सुब्ह आवता है तेरी बराबरी को क्या दिन लगे हैं देखो ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी को दिल मारने का नुस्ख़ा पहुँचा है आशिक़ों तक क्या कोई जानता है इस कीमिया-गरी को उस तुंद-ख़ू सनम से मिलने लगा हूँ जब से हर कोई जानता है मेरी दिलावरी को अपनी फ़ुसूँ-गरी से अब हम तो हार बैठे बाद-ए-सबा ये कहना उस दिलरुबा परी को अब ख़्वाब में हम उस की सूरत को हैं तरसते ऐ आरज़ू हुआ क्या बख़्तों की यावरी को