बसर होना बहुत दुश्वार सा है ये शब जैसे किसी की बद-दुआ है अंधेरे मोड़ पर मुझ सा ही कोई न जाने कौन है क्या चाहता है इक ऐसा शख़्स भी है बस्तियों में हमें हम से ज़ियादा जानता है पनाहें ढूँडने निकली थी दुनिया सवा नेज़े पे सूरज आ गया है अभी तक सुर्ख़ है मिट्टी यहाँ की जहाँ मैं हूँ वो शायद कर्बला है ख़ुशी की लहर दौड़ी दुश्मनों में वो शायद दोस्तों में घिर गया है कई दिन हो गए हैं चलते चलते ख़ुदा जाने कहाँ तक रास्ता है