हर तरफ़ जल्वा-ए-फ़रोज़ाँ है सह्न-ए-हस्ती में इक चराग़ाँ है हुस्न ही हुस्न है निगाहों में ज़र्रा ज़र्रा गुहर-बदामाँ है फूल तो खिल रहे हैं गुलशन में अपनी क़िस्मत है अपना दामाँ है ऐ वफ़ा-ना-शनास वक़्त बता आज फिर किस से अहद-ओ-पैमाँ है ज़िंदगी से जनम का साथ मिरा ज़िंदगी मुझ से क्यों गुरेज़ाँ है आज मौसम हसीं है जान-ए-बहार आज चलिए कि बाद-ओ-बाराँ है मौजज़न एक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ है डूबी डूबी सी नब्ज़-ए-दौराँ है साँस लेना नसीब है मुझ को ज़िंदगी पे भी तेरा एहसाँ है जिस को इंसानियत से नफ़रत है अहद-ए-हाज़िर ये तेरा इंसाँ है जिस की तकमील आज तक न हुई मैं हूँ और मेरे दिल का अरमाँ है 'फ़ैज़' को पूछते रहो यारो सुनते हैं इक अजीब इंसाँ है