हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है हमें मालूम न था By Ghazal << कैफ़-ओ-सुरूर क़ल्ब के इम्... हर तरफ़ जल्वा-ए-फ़रोज़ाँ ... >> हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है हमें मालूम न था इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है हमें मालूम न था हम समझते थे कि जाँ ले के रहेगा ये ग़म दर्द ख़ुद अपनी दवा है हमें मालूम न था हम तो थे शाकी-ए-बे-मेहरी-ए-अय्याम मगर उन के लब पर भी गिला है हमें मा'लूम न था Share on: