हर तरफ़ तज़किरा-ए-जुर्म-ओ-सज़ा होता है आज हम समझे कि बंदा भी ख़ुदा होता है जैसे रहते हों किसी शख़्स की जागीर में हम दिल में रह रह के ये एहसास सा क्या होता है हम-नशीं ग़ौर न कर बात को महसूस तो कर इस छटी हिस में कोई ख़तरा छुपा होता है अपने एहसास में ऐ वाइज़-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा रिंद पैमाना-ब-कफ़ हो तो ख़ुदा होता है कितना प्यारा है वो 'नूरी' मिरा वक़्ती दुश्मन मेरी बे-राह-रवी पर जो ख़फ़ा होता है