मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त आहिस्ता खींचिए जो दबे ज़ेर-ए-संग दस्त गाहे हिना से गाह मिरे ख़ूँ से सुर्ख़ हो सौ सौ तरह से इस के दिखाते हैं रंग दस्त देता है कफ़ से दौलत-ए-पा-बोस शम्अ की रो देगा सर पे धर के फिर आख़िर पतंग दस्त भर आँख तुझ को ग़ैर ने देखा तो फिर मिरे लेवेंगे उँगलियों ही से कार-ए-ख़दंग दस्त जुज़ कुश्त-ओ-ख़ून बे-गुनहाँ आस्तीं से तू बाहर निकालता है कब ऐ ख़ाना-जंग दस्त मुफ़्त उस के हाथ अब जो 'बक़ा' सा लगे शिकार फिर कब करे क़ुसूर ये चर्ख़-ए-पलंग दस्त