हरम-ओ-दैर में हम ने ये तमाशा देखा या'नी हर घर में उसी याद का जल्वा देखा इक तुम्हें चाहने वाले नहीं ऐ शैख़-ए-हरम बरहमन को भी उसी शोख़ का शैदा देखा कू-ब-कू चाक-गरेबान जो फिरा करते हो दिल लगाने का ज़माने में नतीजा देखा न तबीअत कभी बदली न निगाहें उन की हम ने हर रोज़ ज़माने को बदलता देखा किस लिए आज परेशाँ हुआ जाता है तू क्या मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर तू ने मसीहा देखा ताब-ए-नज़ारा न थी जब तो गए क्यों मूसा आप ने हद से गुज़रने का नतीजा देखा सुनिए सुनिए कि हुईं हैं मिरी मख़मूर आँखें आप के सर की क़सम आप का जल्वा देखा वाह क्या ख़ूब वो नाराज़ हुए रूठ गए मेरा चेहरा जो दम-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना देखा हम तो मक़्तल में जिगर थाम के तड़पे लेकिन तुम ने किस तरह से बिस्मिल का तड़पना देखा जोश-ए-वहशत मुझे सहरा की तरफ़ ले आया और आगे जो बढ़े दामन-ए-दरिया देखा शोख़ दिल शोख़ तबीअत का है इंसाँ 'संजर' इस को हर-वक़्त हसीनों ही पे शैदा देखा