हर दार और रसन में जल्वा उसी का देखा

हर दार और रसन में जल्वा उसी का देखा
काकुल की हर शिकन में जल्वा उसी का देखा

काबा हो या कलीसा मस्जिद हो या कि मंदिर
हर एक अंजुमन में जल्वा उसी का देखा

हर शाख़ और शजर में हर फूल और कली में
नसरीं में नस्तरन में जल्वा उसी का देखा

नग़्मों में बुलबुलों के कू-कू में क़ुमरियों की
हर गुल में गुल-बदन में जल्वा उसी का देखा

हुस्न-ए-सनम के अंदर पिन्हाँ उसी को पाया
बुत और बरहमन में जल्वा उसी का देखा

हर नाज़ हर अदा में शोख़ी में और हया में
उस शोख़ के दहन में जल्वा उसी का देखा

ये सब उसी सनम के क़ुदरत के हैं करिश्मे
हुस्न और बाँकपन में जल्वा उसी का देखा

आई नज़र लहद में बा'द-ए-फ़ना वो सूरत
मुँह छुपते ही कफ़न में जल्वा उसी का देखा

परवाने हैं फ़िदाई जिस शम्अ'-रू के 'संजर'
हर शाम अंजुमन में जल्वा उसी का देखा


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