हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा क्या ख़ार सर-ए-राहगुज़र यूँ न रहेगा मुमकिन है तिरी याद सुलगती रहे ता-उम्र ये शो'ला शरर-बार मगर यूँ न रहेगा इस धूप में मेरी भी झुलस जाएँगी आँखें तेरा भी रुख़-ए-ग़ुंचा-ए-तर यूँ न रहेगा मौक़ा है गुल-ओ-बर्ग सजा लो सर-ए-मिज़्गाँ हर फ़स्ल में सरसब्ज़ शजर यूँ न रहेगा कुछ शे'र रक़म करते चलो लौह-ए-जुनूँ पर हर दौर में ये कार-ए-हुनर यूँ न रहेगा कुछ लोग मिरे बा'द भी रह जाएँगे लेकिन सहरा में कोई ख़ाक-ब-सर यूँ न रहेगा ख़ुश आए 'सलीम' आज उसे मेरी असीरी कल तक मगर अफ़्सूँ का असर यूँ न रहेगा